नई दिल्ली। डॉ. ली-मेंग यान ने मेडिकल शोधकर्ता के तौर पर चीन के वुहान में कोविड-19 के शुरुआती प्रकोप की जांच की थी। उन्होंने अब पुख्ता सबूत दिए हैं कि कोविड-19 वायरस की पैदाइश प्राकृतिक तौर पर नहीं हुई थी। डॉ यान का लेख है – जीनोम के असमान्य गुण, प्राकृतिक और क्रमिक उन्नति की बजाय प्रयोगशाला में जटिल परिवर्तन के संकेत, और संभावित कृत्रिम तरीके का चित्रण’। इस लेख में डॉ यान और उनके सहयोगियों ने विस्तार में बताया है कि कैसे चीनी सेना के नियंत्रण में वायरस को प्रयोगशाला मे कृत्रिम तरीके से बनाया गया।
Chinese army made corona virus: Chinese scientist
New Delhi. Dr. Li-Meng Yan, as a medical researcher, investigated the initial outbreak of Kovid-19 in Wuhan, China. They have now provided strong evidence that the Kovid-19 virus did not occur naturally. Dr. Yan’s article is ‘The unusual properties of the genome, the signs of complex changes in the laboratory rather than natural and gradual advancement, and the depiction of possible artificial methods’. In this article, Dr. Yan and his colleagues have described in detail how the virus was artificially created in the laboratory under the control of the Chinese Army.
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और कुछ पश्चिमी वैज्ञानिक अरसे से जोर देते रहे हैं कि कोविड-19 महामारी एक प्राकृतिक आपदा है। उनके मुताबिक ये वायरस संक्रमित जानवरों से इंसानों में आया है। बगैर तथ्यों वाले इस निष्कर्ष को ही राजनीतिक वजहों से मीडिया ने भी फैलाया।
‘आम सहमति’ से कमजोर हुई विश्वसनीयता
डॉ यान के मुताबिक राजनीतिक मकसद के लिए बनाई गई इस ‘आम सहमति’ ने विज्ञान की विश्वसनीयता को कमजोर किया है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वैज्ञानिक पत्रिकाओं में भी कोविड-19 वायरस के अप्राकृतिक पैदाइश वाले विचार को प्रतिबंधित किया गया। हालांकि अब डॉ यान और दूसरे वैज्ञानिकों के शोध की वजह से ‘प्राकृतिक घटना थ्योरी’ की पूरी संरचना पर सवालिया निशान लग गया है।
ध्यान भटकाने की साजिश
चीन ने दावा किया कि आरएटीजी 13 नाम के एक बैट कोरोना वायरस का कोविड-19 से गहरा ताल्लुक है, लेकिन आरएटीजी 13 वास्तव में कोई वायरस नहीं है, क्योंकि इसका कोई जैविक नमूना मौजूद नहीं है। यह सिर्फ एक वायरस की एक जिनोमिक श्रृंखला है, जिसके सटीक होने को लेकर अब कई गंभीर सवाल हैं। डॉ यान के मुताबिक हो सकता है कि आरएटीजी 13 का इस्तेमाल कोविड-19 महामारी के वास्तविक स्रोत से दुनिया का ध्यान भटकाने के लिए किया गया।
सिकुड़ जाती हैं रक्त नलिकाएं
उनका दावा है कि कोविड-19 वायरस की उत्पति चीन की सेना की देखरेख में प्रयोगशाला में हुई है। इसके लिए बैट कोरोना वायरस जेडसी 45 या चीन के जोशन से इकट्ठा किए गए जेडएक्स 21 का इस्तेमाल किया गया। आनुवांशिक इंजीनियरिंग के लिए दोनों का इस्तेमाल कोविड-19 वायरस के ‘बैकबोन’ यानी आधार के तौर पर किया गया।
इस बैट कोरोना वायरस को जुलाई 2015 से लेकर फरवरी 2017 के बीच मूल रूप में पृथक करके चिन्हित किया गया, पहचान की गई। यह कॉनजिंग की थर्ड मिलिट्री मेडिकल यूनिवर्सिटी और रिसर्च इंस्ट्टीयूट फॉर मेडिसिन ऑफ नानजिंग कमांड (नानजिंग) की निगरानी में किया गया।
डॉ. यान का लेख बताता है कि कैसे कोरोना वायरस इंसान के किसी खास ‘एंजियोटेनसिन’ से जुड़ता है। एंजियोटेनसिन वह तत्व होते हैं, जिनकी वजह से रक्त नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं। इस तत्व से कोरोना वायरस की जुड़ने की क्षमता ‘रिसेप्टर बाइंडिंग मोटिफ’ (आरबीएस) तय करता है, जो एंजाइम-2 रिसेप्टर (एसीई 2) में बदलकर आनुवांशिक हेर-फेर करता है।
प्रतिबंधित साइट्स से घिरा होता है
कोविड-19 वायरस का नाजुक हिस्सा दो ऐसे ‘प्रतिबंधित साइट्स’ से घिरा है, जो इस तरह के किसी दूसरे बैट कोरोना वायरस में नहीं पाया जाता। इसी वजह से रिसर्च करने वालों के लिए किसी दूसरे वायरस के अवयव कोरोना वायरस के ‘बैकबोन’ में जोड़ देना आसान होता है। आनुवांशिक जोड़-तोड़ के लिए ऐसी प्रतिबंधित साइट्स’ की मौजूदगी एक निशान के तौर पर होती है।
इसके अलावा कोविड-19 वायरस में एक ‘फ्यूरिन पोलिबेसिक क्लीवेज साइट’ भी होती है। फ्यूरिन निष्क्रिय पड़े प्रोटीन को सक्रिय करता है, जबकि क्लीवेज कोशिका के शुरुआती विभाजन को इंगित करता है। इसके साथ एमिनो एसीड की एक श्रृंखला (पीआरआरए) होती है, जो कोविड -19 वायरस और इंसान की मेम्ब्रेन (कोशिका की बाहरी दीवार) के विलय में सुविधा देती है। इसमें बीमारी पैदा करने और संक्रमण बढ़ाने की क्षमता होती है। ऐसी श्रृंखला किसी और बैट कोरोना वायरस में नहीं पाई गई है। ना ही, बदलाव के किसी ऐसे प्राकृतिक तरीके की पहचान हुई है जो पीआरआरए हिस्से की उत्पति को समझा सके। जबकि ‘फ्यूरिन पोलिबेसिक क्लीवेज’ को कृत्रिम तौर पर प्रवेश कराने की तकनीक का इस्तेमाल आनुवांशिक इंजीनियरिंग में दस साल पहले से हो रहा है।
6 महीने में हो सकता है उत्पन्न
डॉरु यान और उनके सहयोगियों ने गौर किया है कि कोविड-19 के पीआरआरए हिस्से में मौजूद एमिनो एसीड में ऐसी न्यूक्लियोटाइड श्रृंखला है जो शायद ही कभी मिलती है (न्यूक्लियोटाइड डीएनए या आरएनए की आधार संरचना होती है) और इससे पता चलता है कि कोविड-19 वायरस की ‘फ्यूरिन क्लीवेज साइट’ आनुवांशिक इंजिनियरिंग का नतीजा है। लेख का समापन एक डायग्राम के साथ होता है, जो प्रयोगशाला में कृत्रिम तौर पर कोविड-19 वायरस बनाने की प्रक्रिया समझाता है। इस प्रक्रिया के तहत वायरस को 6 महीने के अंदर पैदा किया जा सकता है।
सिर्फ सच्चाई जानना मकसद
महामारी की शुरुआत से ही चल रही वैज्ञानिक सेंसरशिप को देखते हुए, हम सिर्फ सतह के नीचे की सच्चाई को समझने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि प्रयोगशाला में पैदा किए गए कोविड-19 वायरस की जानकारी सामने आए। कोविड-19 को लेकर आगे जांच जरूरी है। करीब 10 लाख लोगों की मौत हो चुकी है और अरबों रुपए का आर्थिक नुकसान हो चुका है। दांव पर बहुत कुछ लगा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासतौर पर अगर इस जानलेवा वायरस की उत्पत्ति चीनी सेना ने की थी।